रूठे सुजन मनाइए रहीम के दोहे व्याख्या सहित ruthe sujan manaiye doha

15 वी शताब्दी में रहीम कुशल प्रशासक, इतिहासकार, लेखक और अन्य विषयों के जानकार थे। वह कलम तथा तलवार दोनों के कुशल जानकार थे। रहीम, बैरम खां जो अकबर के संरक्षक तथा अभिभावक थे उनके पुत्र माने जाते हैं। उन्होंने दिल्ली तथा कुछ प्रमुख सल्तनत पर प्रशासन का कार्य भी संभाला। रहीम राज्य विस्तार के साथ-साथ समाज को मजबूत बनाने के लिए नीतिगत बातें भी लिखी जो आज के दौर में भी उनकी बातें कारगर है। उन्हीं दोहे की कड़ी में आज हम एक दोहा लिख रहे हैं, जो रहीम के विचारों की अभिव्यक्ति है।

रूठे सुजन मनाइए जो रूठे सौ बार रहीम के दोहे व्याख्या सहित

रहीम के लेखों को पढ़ा जाए तो उन्होंने लगभग संपूर्ण लेख सामाजिक सरोकार से जोड़कर ही लिखे हैं। वह समाज की मजबूती के लिए अपने लेखों को मुखर कर रहे थे निम्नलिखित दोहे से समझने का प्रयास करते हैं-

रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार। ।

रहीम कहते हैं अगर कोई सच्चा और ईमानदार व्यक्ति अगर सौ बार भी रूठे तो उसे मना लेना चाहिए, क्योंकि वह समाज के लिए हितकारी है।  उसका रूठना अधिक देर उचित ना रहेगा। उन्होंने महंगे आभूषण का उदाहरण देते हुए कहा जिस प्रकार महंगा आभूषण सौ बार टूटता है, फिर भी उसे हम उचित मूल्य का भुगतान करके जुड़वा लेते हैं। उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति के रूठने पर मना लेना चाहिए क्योंकि वह हितेषी है, दुश्मन नहीं और ऐसे व्यक्ति समाज में खोज पाना अत्यंत दुर्लभ है। इसलिए ऐसे व्यक्तियों का अधिक देर रूठना उचित नहीं रहता।

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निष्कर्ष

जिस प्रकार बहुमूल्य हार टूटने पर उसे फेंकने के बजाय बार-बार जुड़वा लिया जाता है, उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति के रूठने पर मना लिया जाना चाहिए क्योंकि समाज में सज्जन व्यक्ति का मिल पाना दुर्लभ है। ऐसे व्यक्ति लाखों में एक होते हैं, जिसे अधिक देर रुठा रहना नहीं चाहिए। यह आपका सच्चा हितैषी होता है, जो आप के हितों की बात करता है और आपसे बेइंतहा प्यार करता है। ऐसे व्यक्ति को कभी दुख नहीं देना चाहिए और ना ही रूठने का मौका देना चाहिए। अगर ऐसा व्यक्ति रूठे तो उसे किसी भी कीमत पर मना लिया जाना चाहिए।

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