रहीम, कबीर की भांति समाज सुधारक, संत थे। उन्होंने सामाजिक नीतियों तथा मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए अपनी वाणी को मुखर किया। आज उनकी नीति की बातें बड़े प्यार से गाया जाता है और जन-जन में सुनाया जाता है।
उनकी वाणी के द्वारा व्यक्त दोहे आज नैतिक शिक्षा के लिए अति आवश्यक है, उन्होंने नीतिगत जितनी बातें कही वह सब किसी न किसी उद्देश्य को साधती। उनके द्वारा कही गई बातों का कुछ अर्थ अवश्य निकलता है। रहीम के द्वारा कहे गए दोहे को हम लिख रहे हैं जिससे आपको अपने जीवन के लिए कुछ लाभ प्राप्त हो सके।
रहिमन पानी रखिये दोहे की व्याख्या
रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
व्याख्या- रहीम जी अपने दोहे के माध्यम से यह कहना चाह रहे हैं कि मोती, मनुष्य और आटा इन तीनों में जो गुण होने चाहिए वह उन्हें पूर्ण करते हैं इसके बिना सब अधूरे हैं। उन्होंने पानी शब्द का तीन बार प्रयोग किया। उनका मानना है पानी के बिना मोती की चमक नहीं हो सकती, ठीक उसी प्रकार सम्मान के बिना मनुष्य अधूरा है वैसे ही पानी के बिना आटे का कोई अर्थ नहीं।
अतः रहीम के अनुसार मनुष्य को अपने स्वभाव से विनम्र होना चाहिए, उसे सम्मान प्राप्त करना चाहिए उसके बिना मनुष्य का कोई मोल नहीं रह जाता।
(रहीम ने इस दोहे में पानी की महिमा को भी इंगित किया है, पानी के बिना मोती की चमक संभव नहीं है, पानी के बिना आटे का भी कोई अर्थ नहीं है , ठीक उसी प्रकार मनुष्य बिना पानी अर्थात सम्मान के कुछ नहीं है। पानी की महिमा अधिक है यहां रहीम ने उसे भी संकेत किया है)
रहिमन पानी रखिये में कौन सा अलंकार है?
अलंकार- श्लेष अलंकार
पानी- चमक, सम्मान, जल
पहचान
श्लेष अलंकार की पहचान शब्दों के आपस में चिपके होने से की जाती है। अर्थात एक ही शब्द में दो अर्थ चिपके होते हैं , वहां श्लेष अलंकार होता है। शब्द तो एक होते हैं, किंतु उस शब्द के साथ अनेकों अर्थ चिपके होते हैं वहां श्लेष अलंकार होता है।
(श्लेष अलंकार तथा यमक अलंकार में यही भिन्नता है- यमक अलंकार में एक ही शब्द बार-बार आ रहे थे , जबकि श्लेष अलंकार में एक शब्द रहता है उसके अर्थ अनेक होते हैं।)
विशेष
उपरोक्त दोहे को लेकर लोगों में भ्रांतियां है कि इस दोहे में कौन सा अलंकार होगा? अगर दोनों पंक्ति को लिखा जाए तो पानी शब्द तीन बार प्रयोग किया गया है अतः यहां यमक अलंकार होगा। अंतिम पंक्ति का केबल प्रयोग किया जाए जहां पानी शब्द एक बार प्रयोग किया गया है और उसका संबंध मोती, मानुष तथा जून से जोड़ा गया है तो यहां श्लेष अलंकार होगा।
अतः आप ध्यान रखें दो पंक्ति दी गई हो तो यमक अलंकार और अंतिम पंक्ति दी गई हो तो सलेश अलंकार होगा।
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निष्कर्ष
रहीम के दोहे मनुष्य जीवन के लिए शिक्षाप्रद है अगर उनके गुण रहस्य तथा बातों को समझा जाए तो उनके दोहे की प्रासंगिकता सिद्ध होती है उन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान के आधार पर दोहे समाज को समर्पित किए थे जिसमें नैतिक शिक्षा के साथ-साथ जीवन मूल्य को समझने का ज्ञान था। आशा है उपरोक्त दोहा तथा उससे जुड़ी जानकारी आपको कारगर लगी हो अपने सुझाव तथा विचार कमेंट बॉक्स में लिखें हमें आपके सुझावों की प्रतीक्षा रहती है।