प्रस्तुत लेख में आप रहीम के दोहे जो सामाजिक सरोकार से जुड़े हैं, उन्हें पढ़ेंगे। इन के दोहे को पढ़कर आप रहीम के विचारों से परिचित हो सकेंगे। मध्यकाल में सामाजिक सुदृढ़ीकरण की आवश्यकता थी लोगों को एक लक्ष्य दिखाना आवश्यक हो गया था। इस लक्ष्य पर वह चलकर अपने सुशिक्षित तथा व्यवस्थित समाज का निर्माण कर सकें शायद इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर रहीम ने अपने दोहे लिखे।
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि रहीम के दोहे व्याख्या सहित
रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि
जहाँ काम आवै सुई, कहा करै तलवार। ।
पृथ्वी पर उपलब्ध हर वह प्राणी या वस्तु किसी ना किसी उद्देश्य के लिए है, चाहे वह किसी भी आकार, प्रकार या अवस्था में क्यों ना हो। रहीम ने उन सब की महत्ता को स्वीकार करते हुए सभी को उसके गुण के अनुसार स्वीकार करने की बात कही है। रहीम सामाजिक व्यक्ति थे इसलिए इस महत्व को अपने समाज से जोड़कर अपनी बातों को कहा।
तलवार और सुई का उदाहरण देकर सिद्ध किया कि दोनों का अपनी-अपनी जगह महत्व है। कपड़े सिलने के लिए जहां सुई काम आती है तलवार नहीं, वही युद्ध क्षेत्र में तलवार काम आता है सुई नहीं। अर्थात दोनों की उपयोगिता अपनी-अपनी जगह है इसलिए समाज के हर वर्ग को महत्व दिया जाना चाहिए। कोई छोटा या बड़ा नहीं बल्कि आवश्यकता अनुरूप सभी उचित है और सभी स्वीकार्य हैं।
दृष्टान्त अलंकार का प्रयोग किया गया है।
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निष्कर्ष
उपरोक्त लेख को पढ़कर स्पष्ट होता है कि रहीम सामाजिक सरोकार के कवि या लेखक थे। उन्होंने अपने लेखनी के माध्यम से समाज को जोड़ने का प्रयास किया है। उन्होंने सभी को स्वीकार करने पर बल दिया है। जैसा कि आप जानते होंगे वह कलम और तलवार दोनों के धनी थे उन्होंने लेखनी से जितना सफल प्रयास किया उतना ही उन्होंने तलवार से भी सफल शासन किया।
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