पूर्व भारतीय युगीन नाटक – Purva bhartendu yugeen natak notes in hindi
पूर्व भारतेन्दु युगीन नाटक ( Purva bhartendu yugeen natak )
भारतेंदु जी के नाटकों में कविता की प्रधानता प्राप्त है। भारतेंदु पूर्व के प्रायः सभी नाटक कविता से बोझिल थे। हम इन्हें काव्य नाटक कह सकते हैं। कुछ आलोचक इन्हें नाटक नहीं काव्य माना करते हैं। भारतेंदु से पूर्व नाटक के रूप अनेक प्रकार के थे – रामलीला , यात्रा , स्वांग , नौटंकी , ललित आदि। पूर्व भारतीय युगीन नाटक
भारतेंदु पूर्व के दो – चार को छोड़कर शेष सभी नाटक ब्रजभाषा के हैं। भारतेंदु पूर्व नाटकों की जो परंपराएं हैं वह मुख्य रूप से – मौलिक तथा अनुदित हैं ( मौलिक जो स्वयं की रचना हो। अनुदित – किसी विख्यात काव्य का अपने भाषा में अनुवाद। )
पंडित दशरथ ओझा – ने ‘ संदेश रासक ‘ को पहला नाटक माना है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने – ‘ आनंद रघुनंदन ‘ को पहला नाटक माना है।
बाबू भारतेंदु हरिश्चंद्र ने – नहुष को पहला हिंदी नाटक माना है।
किंतु आज भी विद्वानों में मतभेद है , विद्वानों में एकमत नहीं हो पाया कि हिंदी का पहला नाटक कौन सा था।
मौलिक नाटक परंपरा ( Maulik natak )
भारतेन्दु से पूर्व भी मौलिक नाटकों की परम्परा थी , जो लोक प्रख्यात थी। समाज के जनसामान्य तक इन नाटकों की पंहुच थी। मौलिक नाटकों में मुख्य नाटक जो अग्रणी है – प्राणचंद चौहान कृत ‘रामायण महानाटक’ यही से ब्रजभाषा काव्य नाटकों का सूत्रपात माना गया है। इस नाटक में आरंभ से अंत तक पद्य में रचित है।
‘ कृष्ण जीवन ‘ यह प्रबंधात्मक शैली में लिखा गया है , यह नृत्यप्रद नाटक है।
‘ चंडी चरित्र ‘ वीर रस संपन्न नाटक है , जो ओजमय चारण शैली में लिखा गया है। नाटक में दुर्गा सप्तशती में वर्णित चंडी चरित्र को अपनाया गया है।
आनंद रघुनंदन –
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस नाटक को पहला हिंदी नाटक माना है। इसमें राज्य अभिषेक के अवसर पर अप्सराएं अंग्रेजी व अरबी गीत गाती है। यह नायिका – भेद में वर्णित है , पात्रों के नाम भी विचित्र हैं।
प्रबोध चंद्रोदय –
संस्कृत में प्रबोध चंद्रोदय का विशिष्ट स्थान है। भारतेंदु पूर्व युग में इसने कवियों व नाटककारों को बहुत प्रभावित किया।
सभासार –
सभासार को नाटक मान लिया गया , परंतु इसमें नाटक का कोई गुण नहीं है।
नहुष –
भारतेंदु ने इसे हिंदी का प्रथम नाटक माना है , इसमें कवि की कथा को अग्रसर किया गया है एवं पात्रों का परिचय दिया गया है। इसमें नायक नहुष को प्रदान किया गया है। वह इन्द्रासन तथा इंद्राणी को प्राप्त करता है और बृहस्पति की योजना से अनभिज्ञ होकर दोनों को खो देता है। साथ ही सर्प गति पाता है। यह नाटक दुखांत है किंतु अंत में नाटककार नहुष को स्वर्ग जाते दिखाकर दुखांत की समाप्ति कर दी गई है।
अनूदित नाटक परंपरा –
पूर्व भारतेंदु युग में नाटकों की बहुलता है , इसमें से दो एक को छोड़कर शेष ब्रज भाषा में लिखा गया है।
समयसार नाटक – इस नाटक को कुछ विद्वान मौलिक नाटक मानते हैं , तो कुछ अनूदित नाटक ।
आत्मख्याति – टीका है।
समयपाहुड – पद्यात्मक है।
हनुमन्नाटक – भारतेंदु पूर्व में हनुमन्नाटक के कई अनुवाद हुए हैं।
अभिज्ञान शाकुंतलम् – इस काल में कालिदास कृति अत्यंत प्रसिद्ध थी। अभिज्ञान शाकुंतलम् के तीन अनुवाद प्राप्त होते हैं।
प्रबोध चंद्रोदय – प्रबोध चंद्रोदय का महत्व संस्कृत साहित्य में तो है ही , भारतेंदु काल में भी विशेष स्थान मिलता है।
निष्कर्ष – पूर्व भारतीय युगीन नाटक में अनेक नाटकों की रचना हुई , वे नाटक सिर्फ नाटक ना होकर काव्य नाटक थे। जिनकी रचना काव्यात्मक गद्य रूप में हुई थी।
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