Hindi notes on प्राचीन नाटक के तत्व praachin natak ke tatva. If you want articles on other topics then comment below topics name.
प्राचीन नाटक के तत्व Praachin natak ke tatva
प्राचीन भारतीय नाट्य शास्त्र में नाटक के चार तत्व को स्वीकार किया गया है।
1 वस्तु 2 नेता 3 रस 4 अभिनय
प्राचीन नाटक के तत्व -> 1. वस्तु
कथानक तीन प्रकार का होता है
१ प्रख्यात
प्राचीन व पौराणिक व्यक्ति से संबंधित पूरा कथानक होता है
२ उत्पाद्य
इसके अंतर्गत कवि की कल्पना द्वारा नाटक का कथानक त्यार किया जाता है।
३ मिश्र
प्रख्यात व उत्पाद्य के मिश्रण से नाटककार अपने नाटक का कथानक त्यार करता है।
वस्तु ( कथावस्तु ) निम्नलिखित प्रकार से होता है
- बीज (कथा का मूल आधार)
- बिंदु (प्रसंग)
- पताका (प्रधान कथा)
- प्रकारी (गौण कथा )
- कार्य /उद्देश्य (नाटक का लक्ष्य )
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नेता –
नेता के विषय में निम्नलिखित गन की अनिवार्यता मानी गयी है –
- धीरोदात्त (उदार चरित्र)
- धीर ललित (कला प्रेमी)
- धीर प्रशांत ( संतोषी , ब्राह्मण , वैश्य )
- धीरोदधत्त ( प्रचंड स्वभाव )
रस –
भारतीय नाट्य शास्त्र में रस की अनिवार्यता स्वीकार की गई है , साथ ही यह भी स्वीकार किया गया है – नाटक के रस को वही ग्रहण कर सकता है जो सहृदय हो। जो रस को ग्रहण करने की ईक्षा रखता हो , और जिसे नाटक में रुचि हो। वहीं नाटक के वास्तविक रस को ग्रहण कर सकता है।
अभिनय –
रंगमंच पर नेता / नट द्वारा अपने सभी अंगों का प्रयोग करना होता है साथ ही अपने दर्शक के साथ तारतम्यता बनाये रखना होता है। इसके लिए नेता को निम्नलिखित कार्य करना होता है –
वाचिक (बोलना)
आंगिक (अंग से )
आहार्य ( परिधान )
सात्विक (हृदय से )
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