मीडिया लेखन के सिद्धांत
मनुष्य अपने आसपास के परिवेश और प्रकृति से विभिन्न रूपों में प्रभावित होता है। इसके फलस्वरूप उसके मन पर पड़ने वाली विभिन्न छाया
उसकी अनुभूतियों को जगाती है। यही मनुष्य की अभिव्यंजना के विषय बनते हैं , इन्हें अभिव्यंजक करने के लिए साहित्यकार अपनी प्रतिभा कौशल
द्वारा कल्पना और यथार्थ का ऐसा रूप तैयार करता है कि , वह भोगता/पाठक के मन पर कथाकार के समतुल्य प्रभाव पैदा कर देता है। लेकिन
ऐसा लेखन व्यक्ति की निजी अनुभूतियों और विचारों तक ही सीमित रह जाता है। आधुनिक अनुभूतियों के जन संचार के विभिन्न माध्यमों में लेखन
का सबसे अधिक महत्व है। इन माध्यमों के आरंभिक दौर में इनके लिए लेखन कर्म करने वाले अधिकांश लेखक मूलतः सृजनात्मक लेखक ही थे।
लेकिन जैसे-जैसे जनसंचार के माध्यमों ने एक विशाल वर्ग तक अपनी पहुंच बनाई , वैसे – वैसे इसने व्यवसायिक रूप धारण कर लिया। इन माध्यमों
के लेखन कर्म करने वाले सृजनात्मक लेखकों ने भी अपनी रचना भ्रमिता को एक नया आयाम देते हुए स्वयं को प्रजा के अनुसार ढाल लिया।
यह सत्य है कि लिखना एक कला है , और यह कला मनुष्य को जन्मजात नहीं होती। इसे मनुष्य प्रगाढ़ साधना से ही ग्रहण कर पाता है , विभिन्न
विद्वानों ने माना है कि पढ़ने से भी लिखना एक अधिक सुखद कला है।
एक अच्छा पाठक ही रचना के भाव व विस्तार को आत्मसात करता है , लेकिन उस भाव व विचार की वास्तविकता को अभिव्यक्ति देना प्रत्येक लेखक के लिए संभव नहीं होता। इसके लिए एक श्रेष्ठ लेखक अपनी रचनात्मक प्रतिभा द्वारा उस भाव और विचार को लेखन की विविध विधाओं में से किसी एक का चयन कर उसमें अभिव्यक्ति देता है।
किस प्रकार के लेखक को हम मीडिया लेखन मान कर चलें , कि जिससे उसके विषय जानकारी रखते हुए उससे संबंधित विधाओं के स्वरूप तत्व
एवं लेखक पद्धति का विचार किया जा सके। सामान्यतः समग्र लेखन कलाएं साहित्य के अंतर्गत आती है , साहित्य अपने आपमें व्यापक अर्थ के
दायरे में आते हैं , फिर भी विशेष अर्थ में साहित्य की विभिन्न श्रेणियों को प्रमुखता प्रदान की जा सकती है।
प्रथम –
ऐसी साहित्य जो हमारा ज्ञानवर्धन करती है , जो हमारी अनुभूति को कम उत्तेजित करती है। वह सूचनात्मक साहित्य कहा जा सकता है। वह साहित्य मीडिया के अंतर्गत आता है।
दूसरा –
ऐसी सामग्री जिससे ज्ञानवर्धन होने के साथ-साथ हमारी बौद्धिकता निरंतर जागरूक रहती है। उसे विवेचनात्मक साहित्य कहा जाता है , दर्शन , ज्ञान – विज्ञान , गणित , शिक्षा आदि विषय इसके अंतर्गत आते हैं।
तीसरा –
इन दोनों से विभिन्न तीसरी श्रेणी का संबंध मनुष्य के जीवन संवेदना और अनुभूति से है , इसके द्वारा मनुष्य को आनंद प्रदान किया जाता है। इसे ही सृजनात्मक या रचनात्मक साहित्य कहते हैं। इसके अंतर्गत कविता , कहानी , उपन्यास , नाटक आदि विधाएं आती है।
=> रेडियो में समय निर्धारित होता है।
आचार संहिता –
‘ ऐसा नियम जिससे किसी की भावना को ठेस ना पहुंचे , देश के अहित में कोई टिप्पणी ना हो , आदि आचार संहिता के अंतर्गत आते हैं। ‘
मीडिया के मूलभूत सिद्धांत
१ समाचार व उनकी तकनीकी का ज्ञान –
प्रत्येक संचार माध्यम की अपनी कुछ विशेषता होती है , जिसके विषय में मीडिया लेखक को अच्छी तरह जानकारी होनी चाहिए। उदाहरण के लिए प्रिंट माध्यमों की तकनीक में अपेक्षित अंतर है। इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों में रेडियो के लिए लेखन कर्म करते समय लेखक को इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा कि , उसमें ध्वनि व संगीत का सार्थक प्रयोग किया जा सके। वही टेलीविजन के लिए लेखन कार्य करते समय लेखक को विषयों के प्रस्तुतीकरण की तकनीक को समझना आवश्यक होता है।
२ विधा चयन भेंटवार्ता कहानी आदि –
जनसंचार के विभिन्न माध्यमों में अनेक विधाएं हैं , सभी विधाओं में हर व्यक्ति परांगत नहीं हो सकता। इसलिए मीडिया लेखक को अपने आप को भी अभिव्यक्त करने के लिए उपयुक्त विधा का चयन करना आवश्यक है। वह श्रेठ विधा के अभाव में संबंधित विषय के साथ वह न्याय नहीं कर पाएगा।
३ लक्षित वर्ग –
मीडिया लेखक को अपने लक्षित माध्यम और उसके वर्ग को दृष्टि में रखकर ही अपना लेखन करना होता है। जैसे समाचार तत्वों में
- आर्थिक जगत के लोगों ,
- खेल में रुचि रखने वाले लोगों
- बच्चों , महिलाओं , किसानों आदि के लिए अनेक प्रकार की सामग्री होती है।
इन सभी वर्गों के लिए विशेष प्रकार के लेखन की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार रेडियो , टेलीविजन के लिए भी विभिन्न कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है। इसके प्रत्येक कार्यक्रम को समाज के हर एक वर्ग – समुदाय , रुचि व भाषा के स्तर को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। इसलिए लेखक लक्षित को ध्यान में रखकर लेखन कार्य करता है।
४ स्थान एवं समय सीमा –
प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक दोनों ही जनसंचार के माध्यम है , इसलिए इनके प्रकाशन व प्रसारण को ध्यान में रखकर ही लेखन कार्य किया जाता है। प्रिंट माध्यमों में विशेष रूप से समाचार पत्रों के मुख्य समाचारों के लिए अधिक और गूढ़ समाचारों के लिए कम स्थान निर्धारित होता है। संपादकीय लेखन , फीचर एवं विविध स्तंभों के लिए भी पहले से ही स्थान सुनिश्चित होता है। इसलिए इस स्थान को दृष्टि में रखकर ही लेखन कार्य करना चाहिए।
इसी तरह रेडियो , टेलीविजन प्रसारण के लिए समय सीमा की उपलब्धता को ध्यान में रखकर ही लेखक कोई लेखन कार्य करता है। समय सीमा तय होने के कारण कार्यक्रम का विस्तार होना संभव नहीं होता। तय सीमा के भीतर ही लेखक को अपनी पटकथा तैयार करनी चाहिए। टेलीविजन में तो चित्र व दृश्यों के प्रकाशन की भी आवश्यकता पड़ती है , इसलिए उसमें इनके लिए भी पर्याप्त ध्यान देना आवश्यक होता है।
५ मीडिया के आचार संहिता का ज्ञान –
जनसंचार के माध्यम की पहुंच और क्षमता के अनुरूप उसका विशाल पाठक श्रोता और दर्शक वर्ग है। हमारा समाज विभिन्न संप्रदायों , भाषा – भाषियों , वर्गों आदि से बना है। इन सभी को ध्यान में रखकर पत्रकारिता की एक आचार संहिता का निर्माण किया गया है। इस आचार संहिता का पालन करना प्रत्येक जनसंचार माध्यमों के लिए आवश्यक है। किसी भी माध्यम द्वारा किसी जाति , संप्रदाय या भाषा विशेष के व्यक्ति पर नकारात्मक टिप्पणी ना करना तथ्यों की सत्यता को तोड़ – मरोड़ कर छेड़ – छाड़ करना , किसी पर भी आधारहीन आरोप ना लगाना , मित्र देशों की आलोचना न करना , आदि कुछ नियम है जिन्हें जानना प्रत्येक मीडिया लेखक के लिए आवश्यक है।
निष्कर्ष –
समग्रतः हम कह सकते हैं कि जनसंचार के माध्यम पहले की अपेक्षा अधिक प्रासंगिक है। लोगों का भरोसा आधुनिक जनसंचार माध्यमो पर अधिक है अतः लेखक को चाहिए की वह पाठक , श्रोता का यह विश्वास न टूटने दे।
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