kheera sir te katiye rahim ke dohe खीरा सिर ते काटि के रहीम के दोहे

रहीम, अकबर के समकालीन थे अध्ययन से स्पष्ट होता है कि यह बैरम खां के पुत्र थे जो अकबर के संरक्षक तथा अभिभावक बनाए गए थे। रहीम कुशाग्र बुद्धि के थे यह कलम तथा तलवार दोनों का बखूबी इस्तेमाल करना जानते थे। जन्म से मुसलमान होकर भी इन्होंने हिंदू धर्म की आस्था को अपने भीतर समाहित किया था। इन के दोहे आज भी समाज में प्रचलित है कुछ नीतिगत दोहे हम अपनी वेबसाइट पर लिख रहे हैं जिसका अध्ययन विस्तृत रूप से कर सकते हैं।

खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय

रहीम के नीति के दोहे-

खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय। ।

रहीम इस दोहे के माध्यम से यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि जो जिस प्रकार और जिस प्रवृत्ति का होता है उसे उस प्रवृत्ति के अनुसार दंड दिया जाना चाहिए। उन्होंने दोहे में खीरे का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है जिस प्रकार खीरे के भीतर व्याप्त विष को निकालने के लिए उसका सिर काटा जाता है। उस खीरे को रगड़ कर उस पर नमक मिर्ची लगाया जाता है फिर उसका जो स्वाद और गुणकारी गुण उभर कर आता है वह तारीफ के काबिल हो जाता है। ठीक उसी प्रकार जिस मुख से कड़वे वचन और कड़वे व्यवहार प्रकट होते हैं उसे इसी प्रकार का दंड दिया जाना चाहिए।

बिना दंड और भय व्यक्ति अपना आचरण नहीं सुधारता इसलिए व्यक्ति तथा समाज में दंड का भय अवश्य होना चाहिए। यही शासक और न्याय देने वाले के लिए उचित है।

rahim ke dohe with meaning

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निष्कर्ष-

रहीम अकबर के संरक्षक बैरम खान के बेटे थे वह कलम तथा तलवार दोनों के कुशल जानकार थे उन्होंने अपने तलवार से जहां साम्राज्य की रक्षा की वही कलम की ताकत से उन्होंने समाज को एक सूत्र में पिरोने का कार्य भी किया। उन्होंने नीतिगत तथा सामाजिक जितनी बातें कही वह दोहे के रूप में आज जन-जन में व्याप्त है उनकी कही गई बातें अनुकरणीय है।

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