कबीर दास का रहस्यवाद ( कवि के रूप में )

कबीर दास का रहस्यवाद विषय पर हिंदी नोट्स प्राप्त करने हेतु इस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें।

संत परंपरा में कबीर दास का नाम ऊंचा माना गया है, इन्होंने रहस्यवाद के माध्यम से भक्ति आंदोलन में अपनी सहभागिता की अमिट छाप छोड़ी थी। इनके स्वर तीखे और कड़े हुआ करते थे क्योंकि इन्होंने समाज में जहां अन्याय देखा वहां उसकी आलोचना भी की। कबीर ने ईश्वर को निराकार तथा एक माना है, वह सभी के लिए एक समान है। यही कारण है कि उन्होंने धर्म का पाखंड करने वालों को भी नहीं छोड़ा, चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित क्यों ना हो।

प्रस्तुत लेख में कबीर दास आदि विचारों पर विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे और उनके रहस्य वादी दृष्टिकोण को व्यापक रूप से समझेंगे।

कबीर दास का रहस्यवाद

हिंदी साहित्य में रहस्यवाद का प्रचलन काफी पुराना है आदिकाल से इस परंपरा का स्वरूप देखने को मिलता है। कबीर दास ने भी इसी परंपरा को अपनाया। कबीर दास रहस्यवादी कवि थे उनके काव्यों के अध्ययन से स्पष्ट होता है। कबीर के साहित्य से उनके विभिन्न स्वरूपों का भी पता चलता है वह संत, कवि, समाज सुधारक, दार्शनिक आदि भी थे।

कबीर का रहस्यवाद विभिन्न प्रकार के धर्मावलंबियों से संबंधित था।

फिर भी उन सभी में श्रेष्ठ भावना और समन्वय दृष्टि कबीर की थी। उनके विचार में रहस्यवाद के विभिन्न दृष्टिकोण देखने को मिलते हैं। डॉक्टर त्रिगुणायत लिखते हैं – ‘कबीर में कभी सूफियों का प्रेम मार्ग दिखता है तो कभी योगियों का योग, तो कहीं सिद्धों की भाषा शैली है तो कहीं उपनिषदों का रहस्य समग्रतः उन्होंने सभी रहस्य को आत्मसात किया है।’

यही कारण है कि कबीर के रहस्यवाद में विविधता दिखती है।

कभी वह ईश्वर के आराधना की बात करते हैं तो कहीं प्रेम के रहस्य को उजागर करते हैं। उनके साहित्य में अभिव्यक्त रहस्यवाद हमें विविध रूपों में देखने को मिलते हैं। किंतु उन्होंने समस्त साहित्य में सत्य का प्रयोग किया है।

उन्होंने सत्य और स्वयं के गुणवान होने से ईश्वर के निकट पहुंचने पर बल दिया है।

कबीर दास का रहस्यवाद अस्पष्ट रहा इसे वह व्यक्ति ही समझ पाया जो समझने का एक इच्छुक रहा। यह बातों को शब्दों के साथ तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया करते थे। क्योंकि इनके वाणी में व्यंग्य भी हुआ करता था। कभी यह स्वयं को ही ब्रह्मा बताते हैं तो कभी निर्गुण निराकार को ब्रह्मा कहते हैं। इन्होंने ईश्वर को स्वयं के भीतर देखने की बात कही है। कबीर व्यर्थ के धर्म आडंबर की आलोचना करते हैं, क्योंकि प्रत्येक जीव के भीतर उस परमात्मा का वास है जिसने जीवन दिया है, चाहे वह जीव छोटा हो या बड़ा इसलिए वह ईश्वर के रहस्य को दो रूप में व्यक्त करते हैं।

कबीर निर्गुण के उपासक थे, उन्होंने ईश्वर को निर्गुण, निराकार माना।

किंतु उन्होंने ईश्वर के साथ अपना संबंध स्थापित कर सगुण रूप का भी परिचय दिया। वह कभी स्वयं को बालक मानते हैं कभी स्त्री मानते हैं, ऐसा कर उन्होंने ईश्वर के दोनों स्वरूप को माना है। डॉक्टर श्यामसुंदर दास के अनुसार – ‘भारतीय रहस्यवाद की विशेषता रही है कि उसने सभी प्रकार के रूप को स्वीकार किया है जो ब्रह्म जिज्ञासा का मूल है।  इस अवस्था में पहुंचकर कवि रहस्यवाद से चिंतन और कल्पना के क्षेत्र की ओर झुकाव करता है।  वह भावुकता के साथ-साथ रहस्यवाद के रूप को पकड़ लेता है, कबीर दास में इसी प्रकार के रहस्यवाद की प्रधानता देखी जाती है।’

निम्नलिखित कुछ प्रमुख रहस्यवाद जो कबीर द्वारा प्रस्तुत किए गए हैं

1. भावनात्मक रहस्यवाद

रहस्यवादी कवि अपने रहस्यवाद को या आध्यात्मिक चित्तवृत्ति को प्रेम और भावना द्वारा व्यक्त करते हैं। कबीर भी उन्हीं कवियों में से एक थे। उन्होंने परब्रह्मा को अपने प्रेम और भावनात्मक भक्ति के द्वारा प्राप्त करने का प्रयास किया।

” दुलहिन गावो मंगलाचार

हर घरि आए हो राजा राम भरतार।

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कहैं कबीर ब्याहि चले हैं एक जीव अविनासी।”

उपरोक्त पंक्ति में कबीर दास का भावनात्मक रूप देखने को मिलता है जहां ईश्वर को वर तथा स्वयं को वधू के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। दोनों का संबंध पारलौकिक भी है, जिसमें कबीर अपने त्याग की बात अंतिम पंक्ति में कर रहे हैं। यह प्रसंग मृत्यु के पश्चात का है, जिसमें कबीर मंगलाचार मंगल गीत गाने को कह रहे हैं। क्योंकि वह अपने प्रेमी से पुनः मिलने जा रहे हैं।

यहां उनके रहस्यवाद की स्पष्ट अभिव्यक्ति देखी जा सकती है।

जल में कुंभ कुंभ में जल है बाहर भीतर पानी

फूटा जल जल जल ही समाया यही तथ कह्यौ ज्ञानी। ।

यहां कबीर ने घड़ा और जल के माध्यम से ईश्वर और मनुष्य के बीच के संबंध को प्रकाशित किया है। जो मनुष्य पृथ्वी पर जन्म लेता है वह पुनः मृत्यु के पश्चात उसी ईश्वर की शरण में चला जाता है जिसने उसे जन्म दिया। इस प्रकार उसका विलय उसी परमेश्वर में हो जाता है।

यहां आत्मा और परमात्मा के मिलन की ओर भी संकेत किया गया है।

2. योगिक रहस्यवाद

( कबीर दास का रहस्यवाद )

कबीर ने ईश्वर की प्राप्ति के लिए योग के मार्ग को भी श्रेष्ठ माना है, जिसमें अष्टांग योग, मंत्र योग, राजयोग, तप योग आदि सम्मिलित है। इस योग की साधना से आत्मा का परमात्मा से मिलन संभव है। इन क्रियाओं को करने के लिए सिद्धि की आवश्यकता होती है।

इस सिद्धि को कोई योग साधना के माध्यम से ही प्राप्त कर सकता है।

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3. पारिभाषिक शब्दों का रहस्यवाद

कबीरदास के साहित्य में अनेक स्थान पर पारिभाषिक शब्दों का सुंदर प्रयोग देखा गया है। उन्होंने हठयोग की विभिन्न क्रियाओं में प्रयोग किया है।

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4. अभिव्यक्ति मूलक रहस्यवाद

( कबीर दास का रहस्यवाद )

अभिव्यक्ति मूलक रहस्यवाद सिद्ध तथा नाथ साहित्य की देन है। जिसकी झलक कबीरदास में देखने को मिलती है। उन्हें भाषा और शब्दों को ग्रहण करना बेहद पसंद था, इसलिए उनकी भाषा शैली को घुमक्कड़ भाषा शैली भी कहा गया है। स्वयं उन्होंने भी भाषा को बहता नीर कहा है।

यही कारण है कि उनके साहित्य में अनेकों प्रकार की शब्दावली यों के दर्शन होते हैं।

समाज के बीच प्रचलित बातों को अभिव्यक्ति देकर उसे रहस्यमई उक्ति का रूप दिया है। जिन्हें सामान्य जनता आम बोलचाल की भाषा में प्रयोग करते थे उसे कबीर दास जी ने रहस्यमय ढंग से प्रस्तुत किया।

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निष्कर्ष

उपरोक्त रहस्यवाद के रूप को पढ़कर स्पष्ट होता है कि कबीर के साहित्य में सभी प्रकार के रहस्यवाद का सामंजस्य था। उन्होंने जहां प्रेम, योग, साधना, सौंदर्य आदि को अपनाया वही उन्होंने उसे रहस्यवाद के साथ जोड़कर ईश्वर से जुड़ने का मार्ग भी बताया। कबीर दास की यही शैली उन्हें अन्य कवियों से अलग करती है। जिसमें प्रेम, सौंदर्य, लाक्षणिकता, आध्यात्मिकता, जिज्ञासा, चेतना की भरमार है। वहीं उन्होंने रहस्यवाद को व्यक्ति के जिज्ञासा के साथ जोड़कर उसे एक चेतना प्रदान करने का भी प्रयास किया है।

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