jo rahim uttam prakriti ka kari sakat kusang ka arth जो रहीम उत्तम प्रकृति

रहीम कुशल प्रशासक, योद्धा, लेखक, इतिहासकार आदि थे उन्होंने प्रशासनिक कार्य जितनी कुशलता के साथ किए उतनी ही कुशलता से लेखन कार्य भी किया। उन्होंने सामाजिक सरोकार से जुड़े दोहे लिखे जो आज भी प्रासंगिक है। उनकी नीतिगत बातें आज भी लोगों का मार्गदर्शन करती है उनके कुछ दोहे हम अपने वेबसाइट पर लिख रहे हैं जिसमें से एक यह लेख है।

जो रहीम उत्तम प्रकृति रहीम के दोहे व्याख्या सहित

रहीम, तुलसीदास के समकालीन थे यह अकबर के संरक्षक बैरम खां के पुत्र थे जिन्हें कलम और तलवार की अच्छी जानकारी थी। यह अच्छे प्रशासक भी थे यह अकबर के दरबार में सलाहकार तथा विभिन्न विभाग को भी देखा करते थे।

जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग। ।

रहीम के अनुसार जो व्यक्ति उत्तम आचरण तथा उत्तम व्यवहार का होता है, वह किसी भी परिस्थिति किसी भी समाज में क्यों न रहे उसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वह अपने उत्तम आचरण को नहीं छोड़ता चाहे उसके आसपास कितने भी दुराचारी व्यक्ति क्यों ना हो। ठीक उसी प्रकार जैसे चंदन में विशेष गुण होता है उसकी शीतलता और सुगंध तब भी नहीं घटती जब उसके चारों और विषधर सांप लिपटे होते हैं। वह उन सांपों के बीच रहकर भी अपने गुणों का त्याग नहीं करता। ठीक उसी प्रकार एक उत्तम प्रकृति का व्यक्ति हजारों दुराचारी व्यक्ति के बीच रहकर भी अपने उत्तम आचरण को नहीं त्यागता।

ऐसे व्यक्ति समाज में पूजनीय होते हैं जैसे चंदन का लेप मस्तक पर लगाया जाता है, जिससे शीतलता प्राप्त होती है तथा ईश्वर के लिए भी पूजन सामग्री का कार्य करता है।

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निष्कर्ष

रहीम की नीतिगत बातें आज भी प्रसांगिक है, उनके दोहे को पढ़कर उनके अर्थों को समझा जाए तो वह सामाजिक ताना-बाना को मजबूत बना रहे थे। वह उचित मजबूत समाज का निर्माण करना चाहते थे, इसी क्रम में उपर्युक्त दोहा देखें तो वह एक उत्तम प्रवृत्ति का व्यक्ति बनाने पर जोर दे रहे हैं वह ऐसे समाज की कल्पना कर रहे हैं जहां हजारों दुराचारियों के बीच रहकर भी अपने उत्तम प्रवृत्ति का संरक्षण किया जा सकता है। इसके लिए उन्होंने चंदन के वृक्ष का उदाहरण दिया जो हजारों विषैले सांपों के बीच भी रहकर अपने उत्तम गुणों का त्याग नहीं करता।

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