छिमा बड़न को चाहिए छोटन को उतपात रहीम के दोहे व्याख्या सहित

सामाजिक सरोकार से जुड़े रहीम के दोहे आज भी समाज के बीच बोले जाते हैं, उनके द्वारा लिखे गए दोहों की प्रासंगिकता आज भी है। मध्यकाल में लिखा गया उनका दोहा आज के समाज के लिए उचित दिशा दिखाने का कार्य कर रहा है। उनके सराहनीय कार्य को आज हम दोहे के माध्यम से व्यक्त कर रहे हैं। आशा है आप भी निम्नलिखित दोहे से स्वयं को जोड़ सकेंगे।

छिमा बड़न को चाहिए छोटन को उतपात रहीम के दोहे व्याख्या सहित

रहीम, अकबर के संरक्षक बैरम खान का पुत्र था। वह कलम तथा तलवार दोनों का धनी था। रहीम ने कलम से जितने उल्लेखनीय कार्य किए तलवार से भी उतने ही प्रशंसनीय कार्य किए। उसने कई जगह प्रशासनिक कार्य तथा सल्तनत को संभाला।

छिमा बड़न को चाहिए, छोटन को उतपात

का रहिमन हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात।

शब्दार्थ- छिमा – क्षमा, बड़न – बड़े, छोटन – छोटा, उतपात – शरारत, हरि – सज्जन, घट्यो- कम होना, भृगु – ऋषि का नाम (ऋषि)

व्याख्या – रहीम ने बड़े और समझदार व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए उसके महिमा को बढ़ाने का कार्य किया है। उन्होंने बड़े का बड़प्पन सिद्ध करने का प्रयास अपने उपरोक्त पंक्तियों में किया है। उन्होंने अपने इन पंक्तियों के माध्यम से कहा है, बड़े लोगों को सदैव शीतल और शांत तथा क्षमा देने के लिए तत्पर रहना चाहिए। वही छोटा अपने स्वभाव के कारण उत्पात करता है तो उसे प्रेम से समझाना चाहिए, उस पर क्रोध करने से बचना चाहिए। क्योंकि ऐसे बड़े क्षमाशील व्यक्ति को क्रोध करने से कोई लाभ नहीं होता, उसका कुछ घटता नहीं। ऐसे सज्जन व्यक्ति क्रोध में किसी का तिरस्कार नहीं करते, अर्थात उसे लात नहीं मारते, अपने से दूर नहीं करते।

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निष्कर्ष

रहीम ने उपरोक्त दोहे के माध्यम से बड़े तथा छोटे के स्वभाव में भेद बताया है। बड़ा अपने बड़प्पन को कभी नहीं छोड़ता, चाहे छोटा कितना भी उत्पात करता रहे उसे क्षमा देना बड़े का कार्य है। उसे समझाना बड़े का कार्य है ठीक उसी प्रकार जैसे ब्राह्मण के कितने भी गलती होने पर ईश्वर उसका त्याग नहीं करते, उसका तिरस्कार नहीं करते। ठीक उसी प्रकार बड़े को अपने आदर्शो के अनुसार छोटे को अपने दया का पात्र बनाना चाहिए।

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