Today we will read Atal Bihari Vajpaee Kavita with Vyakhya in Hindi.
अटल बिहारी बाजपेई महान लेखक और कवि थे उनकी कविता आज के दौर में भी प्रासंगिक है। उनकी लेखनी जब भी आरंभ होती वह किसी एक मुद्दे को उठाती थी चाहे वह गरीबी का मुद्दा हो या राजनैतिक का।
अटल बिहारी वाजपेई किसी परिचय के मोहताज नहीं है , उन्होंने आजीवन देश के लिए संघर्ष किया। अल्प आयु से ही उन्होंने समाज सेवा की भावना ग्रहण की थी और मरते दम तक उन्होंने अपने जीवन में अपनाया।
मौत से ठन गई
(अटल बिहारी वाजपेई की कविता)
जूझने का मेरा इरादा ना था
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था ,
रास्ता रोककर वह खड़ी हो गई
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई
मौत की उम्र क्या है? दो पल भी नहीं
जिंदगी सिलसिला , आज कल कि नहीं
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरू
लौट कर आऊंगा, कुछ से क्यों डरूं ?
तू दबे पांव चोरी-छिपे से न आ ,
सामने वार कर फिर मुझे आजमा
मौत से बेखबर , जिंदगी का सफर,
शाम हर सुरमई , रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि , कोई गम ही नहीं
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं
प्यार इतना परायो से मुझको मिला
न अपनों से बाकी है कोई गिला
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए
आज झकझोरता तेज तूफान है
नाव भंवरों कि बाहों में मेहमान है
पार पाने का कायम मगर हौसला
देख तेवर तूफां का , तेवरी तन गई
मौत से ठन गई…….
(श्रद्धा अटल बिहारी वाजपेई)
कविता की व्याख्या –
यह कविता अटल बिहारी वाजपेई जी ने जीवन के अंतिम दिनों में लिखा था। जब उन्हें यह आभास हो गया था अब उनकी जीवन लीला उनका अभिनय इस जीवन के रंगमंच पर समाप्त होने वाला है। तब उन्होंने सामने से आती हुई मौत से दो-दो हाथ करते हुए यह कविता “मौत से ठन गई” की रचना की।
वाजपेई जी कहते हैं मौत से जूझने का उससे लड़ने का कोई पूर्वाग्रह / इरादा नहीं था। जीवन के इस मोड़ पर मुलाकात होगी , ऐसा कोई वादा भी नहीं किया था। किंतु फिर भी मौत मेरा रास्ता रोक कर खड़ी हो गई , जैसे लगा जिंदगी बस यही तक थी।
खड़े इस मोड़ पर मैं यह सोचता रहा उम्र की क्या समय सीमा होती है ? पल – दो पल नहीं ! जिंदगी एक सिलसिला है। आज जीवन है तो कल मृत्यु है , यह सदियों से चली आ रही है। आज नहीं तो कल सभी को जाना है।
मैंने भी सोचा जी भर के जिंदगी जिऊँ और अपने मन से इच्छा से अपना मौत स्वीकार करूं। अपनी अवस्था को देखकर मैं मौत को स्वीकार करने से क्यों डरूं ? मैं लौट कर आऊंगा ! पुनः लौट कर आऊंगा ! मैं अपने मन से इस मौत को स्वीकार करता हूं।
अटल जी मौत से अभी भी दो-दो हाथ करने के इरादे से उसे चुनौती देते हैं। तू इस प्रकार चोरी-छिपे से मेरे सामने मत आ दम है तो सामने से आकर वार कर। फिर मेरी इच्छा शक्ति को आजमा , उसका परिचय कर।
अगले ही क्षण वह कहते हैं जिंदगी मौत से बेखबर होती है। जहां पूरी जिंदगी सुरमई अर्थात खुशियों से भरी होती है अंतिम दिनों में रातें सुकून देने वाली जैसे कानों में बांसुरी की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ती हो। इस प्रकार मौत से बेखबर रहा मेरा जिंदगी का सफर।
मानव जीवन में सुख-दुख , अपने-पराए आदि का चक्कर लगा रहता है। अटल जी इससे अछूते नहीं थे , उनके जीवन में भी गम था , दर्द था अपने पराए सभी थे। सभी प्रकार के क्षणों से उनका सामना हुआ था।
उनके चाहने वाले अनेकों ऐसे लोग थे , जो उन्हें कभी मिले नहीं , उनसे साक्षात्कार नहीं हुआ। ऐसे करोड़ों लोगों के वह प्रिय थे जिनसे उन्हें सनेह प्यार मिलता रहता था। इस सुख को पाकर उन्होंने जीवन के सारे गिले शिकवे भुला दिए थे।
अटल जी ने अपने जीवन में बड़े-बड़े चुनौतियों का सामना किया था। सभी चुनौतियां एक नई ऊर्जा का संचार किया करती थी। उन्होंने उस समय भी ऐसे दुष्कर कार्य कर दिखाएं जो सामान्य व्यक्ति के लिए सुलभ नहीं था। राजनीतिक पार्टी जिससे वह संबंध रखते थे बिल्कुल समाप्त होने के कगार पर थी , उस पार्टी को उन्होंने एक सम्मानजनक स्थिति पर ला खड़ा किया। यह आंधियों में दिए जलाने के समान ही है।
आज मौत रूपी तूफान मेरे जीवन को बीच मझधार में झकझोर रही है , जैसे मेरे जीवन रूपी नाव को दबाने के लिए आतुर हो। मुझे लेने आए मेहमान भंवरों का रूप लिए है।
किंतु फिर भी और अधिक प्यार पाने का अभी हौसला मेरा मिटा नहीं है। मैं अभी और जीना चाहता हूं , मेरी इच्छा शक्ति मृत नहीं हुई है। मैं अभी और प्यार का अधिकारी हूं। किंतु इस मौत रूपी तूफान के तेवर को देखकर मेरी मोहे भी तन गई है। आज आमना-सामना हो ही जाए , इस प्रकार उनकी मौत से आज ठन गई है।
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मेरे शब्द –
उपर्युक्त व्याख्या से स्पष्ट होता है कि वाजपेई जी एक जिंदादिल व्यक्ति थे। हौसलों से परिपूर्ण किसी भी परिस्थिति में हार ना मानने वाले व्यक्ति थे। मौत को भी सामने देखकर उन्होंने उस से दो-दो हाथ करने का ठान लिया। उन्हें पता था मरना तो सभी को है एक सम्मान और मौत को चुनौती देकर ही मरना बेहतर है। इसलिए उन्होंने मौत से दो-दो हाथ करने का ठान लिया।
उन्होंने जीवन में देश के लिए जो योगदान दिया वह सराहनीय है। देश उनके योगदान के लिए सदैव कृतज्ञ है। यही कारण है कि आज वाजपेई जी लोगों के हृदय में विराजमान हैं। ऐसा प्रत्येक राजनेता या व्यक्ति के लिए संभव नहीं है।
उनका कवि मन सदैव लोगों के बीच उपस्थित रहता है।
उनकी कविताएं उनके लेख आज भी लोगों को अपनी और आकर्षित करते हैं। बाजपेई जी को जनता ने जो प्यार दिया जो सम्मान दिया वह अद्भुत था।