प्रेमचंद के उपन्यास गोदान में आदर्शवादी दृष्टि अथवा यथार्थवाद परिलक्षित होता है

प्रश्न   – प्रेमचंद के उपन्यास गोदान में आदर्शवादी दृष्टि अथवा यथार्थवाद परिलक्षित होता है , स्पष्ट कीजिए। 

 

प्रेमचंद के उपन्यास गोदान में आदर्शवादी दृष्टि

 

उत्तर – प्रेमचंद कथा और उपन्यास के सम्राट थे। प्रेमचंद का समय वही है जो कविता के क्षेत्र में छायावाद का था। एक और छायावादी कवी कविता के माध्यम से विचारों में क्रांति भर रहे थे तो दूसरी और कथा साहित्य में प्रेमचंद सक्रिय थे। प्रेमचंद स्वाधीनता संग्राम में अपने लेखन के माध्यम से योगदान दे रहे थे , उन्होंने भारत की भोली-भाली जनता जिसका पूंजीवादी निरंतर किसी न किसी प्रकार से शोषण कर रहा था , उसको उजागर किया है। प्रेमचंद ने उपन्यास में भी संपूर्ण समाज का चित्रण किया है। उनकी कहानियां निरंतर किसी न किसी उद्देश्य और किसी न किसी घटना पर आधारित हुआ करती थी , जिसमें एक सूक्ष्म भाव छिपा रहता था।  उनकी कहानियां प्राया यथार्थवाद पर आधारित रहती थी साथ ही उसमें आदर्शवाद और ब्राह्मणवादी शैली का भी प्रभाव परिलक्षित होता था।

स्वाधीनता संग्राम में महात्मा गांधी के आग्रह पर उन्होंने जमी जमाई सरकारी नौकरी को भी को छोड़कर महात्मा गांधी का साथ दिया।  किंतु अंततोगत्वा उनकी भावनाएं आहत हुई उन्हें समझ आ गया कि संपूर्ण समाज में पूंजीवाद का वर्चस्व है। अतः वह मार्क्सवाद से भी प्रभावित हुए किंतु उनके कहानी और उपन्यास में आदर्शवाद और यथार्थवाद कि कोई कमी नहीं हुई।

 

आचार्य नंददुलारे वाजपेई और डॉक्टर नगेंद्र ने आदर्शवादी वहां प्रेमचंद ने स्वयं अपने आपको आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहा है

साहित्य यथार्थ और आदर्शवाद का समन्वय है नग्न यथार्थ पुलिस की रिपोर्ट भर है तो यथार्थवाद आदर्श प्लेटफार्म का फतवा। ……..प्रेमचंद

साहित्य की सर्वोत्तम परिभाषा जीवन की आलोचना है। ……….प्रेमचंद

नीति और साहित्यशास्त्र का लक्ष्य एक है केवल उपदेश देने की विधि में अंतर है।

यथार्थवाद हमको निराशावादी बना देता है , उसके कारण मानव चरित्र पर से हमेशा विश्वास उठ जाता है। यथार्थवाद हमारी दुर्बलता हमारी विषमताओं और हमारी कर्मो का नग्न चित्र होता है।

 

समाजवादी आलोचकों ने उनके उपन्यास को जन – जीवन के यथार्थ चित्र समाज के सर्वहारा वर्ग किसान मजदूर और नारी के शोषण और उत्पीड़न का सहानुभूतिपूर्ण वर्णन और शोषकों तथा उत्पीड़ितों के प्रति कहीं व्यक्त और कहीं परीक्षण घृणा भाव देख उन्हें आदर्शवादी उपन्यासकार कहा है। और अपने राजनीतिक मतवाद के कारण उन्हें वह श्रेय प्रदान किया है , जिससे वह कदाचित पूर्ण अधिकारी भी नहीं है।

रूसी आलोचक ब्रेस क्रोनी किसी पूर्वाग्रह के कारण प्रेमचंद को प्राप्त सम्मान तथा भारत में मिली साहित्यिक प्रतिष्ठा को पर्याप्त नामांकन लिखते हैं

” इस भारतीय लेखक को बहुत दिनों तक उसकी प्राप्ति नहीं मिलेगी जो कि उसे अपनी महान साहित्य परंपरा के लिए मिलना चाहिए”

 

आचार्य नंददुलारे वाजपेई –  ” कोई कलाकार या तो यथार्थवादी ही हो सकता है यह आदर्शवादी , यह दोनों परस्पर विरोधी विचारधाराएं और कला शैलियां हैं इनका मिश्रण किसी एक रचना में संभव नहीं। साहित्य निर्माण में यथार्थोंन्मुख आदर्शवाद या आदर्शोन्मुख यथार्थवाद नाम की कोई वस्तु नहीं हो सकती। आदर्श और यथार्थ को मिलाने वाला कोई पृथक वाद नहीं है। यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता क्योंकि दो परस्पर विरोधी जीवन दर्शन और कला परिपाटियों में एक तत्व की कल्पना ही कैसे की जा सकती है”

 

डॉ नगेंद्र  –   ने इस तथ्य को और अधिक वैज्ञानिक ढंग से समझाने की चेष्टा की है , यथार्थ , रोमांस , आदर्श , व्यवहारिक आदर्श आदि का सूक्ष्म विश्लेषण प्रस्तुत करके उन्होंने प्रेमचंद की व्यावहारिक आदर्शवादी कहा है। उनके अनुसार यथार्थवादी का दृष्टिकोण वस्तुवादी और तटस्थ होता है। रोमानी लेखक वस्तु पर अपने भाव और कल्पना का आरोप कर उसको अपने सपनों के रंगीन आवरण में लपेटकर देखता है और आदर्शवादी वस्तु पर , अपने भाव और विवेक का आरोप कर उसे अपने आदर्श के अनुकूल करता है। रोमानी और आदर्शवादी में मुख्य भेद यह है कि वस्तु प्रभाव का आरोप करते हुए भी एक कल्पना विलास और स्वप्न मोहकता का प्रधानी होता है तो दूसरे में विवेक संयम और व्यवहारिकता का”

 

जैनेंद्र –  जी का मत है कि डॉक्टर नगेंद्र के मत से मिलता-जुलता है मैं मानता हूं कि आधुनिक हिंदी साहित्य में प्रेमचंद पहले प्रणिता है जो यत्नपूर्वक यथार्थ के दबाव से बचने के लिए रोमांस की गलियों में भूलकर भी मौज करने नहीं गए। रोमांस को उन्होंने छोड़ ही दिया , सो बात नहीं उस अर्थ में रोमांस कभी छूटता है। कोई लेखक कल्पना को कैसे छोड़ सकता है। कल्पना बिना लेखक क्या लेकिन अपने हृदयघात रोमांस को उन्होंने व्यवहार पर घटाकर देखा और दिखाया। उनके साहित्य की खूबी यह नहीं कि उनका आदर्श अंतिम है , अथवा स्वर्गीय है , उनकी विशेषता तो यह है कि उस आदर्श के साथ – साथ व्यवहार का और सामंजस्य नहीं है। वह आदर्श स्वयं में कम ऊंचा है कि वह नीचे वालों को ऊपर उठा कर उनके साथ – साथ रहना चाहता है। उस समय की पुष्टता के कारण वह पुस्ट है।

 

प्रेमचंद को आदर्शोन्मुख यथार्थवाद ही कहने का कारण यह भी है कि जहां उनका जीवन चित्रण यथार्थ अवलोकन और समाज निरीक्षण पर आधारित है , वहां उनके पात्र समस्याओं के समाधान आदि आदर्शवादी हैं। कुछ लोगों का यह मत है कि जीवन में यथार्थ और आदर्श दोनों होते हैं और उपन्यास जीवन का चित्र होता है। अतः उपन्यास भी आदर्शोन्मुख यथार्थवाद भी हो सकता है , ठीक नहीं क्योंकि यथार्थवाद या आदर्शवाद का संबंध जैसा कि हम ऊपर कह चुके हैं लेखक की मानसिक प्रवृत्ति से है , उसकी जीवन दृष्टि से है , और प्रेमचंद के संस्कार पारिवारिक परिस्थितियां युग प्रभाव सब ने उनके जीवन दृष्टि को आदर्शवादी बनाने में योगदान दिया। गोदान में मेहता भी आत्मा की और चिंगारी में विश्वास करते हैं जो समय आने पर आलोकित हो उठती है। ईश्वरीय न्याय पर भी उनकी आस्था थी।  गांधी युग के तीनों चरणों का पूरा इतिहास उनके उपन्यासों में मिलता है। गांधी से प्रभावित होकर ही उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दिया था , अपने को गांधीवादी मानते हुए भी उन्हें गांधी के सिद्धांत में विश्वास था। आर्य समाज के सुधारको से भी वह प्रभावित थे , उनका साहित्य दृष्टिकोण भी आदर्शवादी था। 1936 ईस्वी तक आते-आते गांधीवादी विचारधारा , सुधारवादी दृष्टि हृदय परिवर्तन के सिद्धांत से प्रेमचंद का मोहभंग हो चुका था। उन्होंने अपने जीवन के कटु अनुभव तथा मार्क्सवादी विचारधारा ने उनके मन में पक्का विश्वास जमा लिया था कि मानव समाज के कष्टों और यात्राओं का एकमात्र कारण पूंजी है। अर्थ वैमनस्य है और इसके लिए उत्तरदाई है समाज व्यवस्था , पूंजीवादी समाज व्यवस्था। अतः गोदान में उन्होंने इसी पूंजीवादी व्यवस्था का नकाब उलटकर उसके नग्न विभक्त कुरूप  यथार्थ का पर्दाफाश किया है , उस पर कड़ा प्रहार किया है।

 

पूंजीवादी व्यवस्था शोषण पर आधारित है उनका काम है साधनहीन और बेबस लोगों को लूटना और अपना वर्चस्व दिखाना। गोदान का भी विषय इसी पर आधारित है। शोषक के वर्ग हैं,  गांव के – जमींदार , राय साहब , अमरपाल सिंह , महाजन , दातादीन , पुलिस का दरोगा , पटवारी झिंगुरी सिंह यह सब होरी तथा अन्य गांव वालों का शोषण करते हैं।

थाना पुलिस और न्याय व्यवस्था भी पूंजीवादी व्यवस्था के साथ है रामसेवक थाना पुलिस कचहरी अदालत के व्यवस्था को उजागर करता है। राय साहब अपनी महानता दिखाने के लिए गांव में रामलीला और पूजा पाठ करते हैं , किंतु चंदा उन असहाय निर्धनों से वसूलते हैं जिनके पास पहले ही दुखों का अम्बार है।  ब्राह्मण उन्हें धर्म का भय दिखाकर उनका शोषण करते हैं। प्रेमचंद ने भारतीय किसान की उस व्यवस्था को उजागर किया है , जिसके अंतर्गत भारतीय किसान कर्ज में जन्म लेता है और जीवनभर कर्ज के बोझ से दबा रहता है और कर्ज में ही मर जाता है। इतना ही नहीं वह अपनी संतान पर भी कर्ज का बोझ लाद देता है।

गोदान का मुख्य पात्र होरी दिन-रात करके कमाता है ताकि वह एक गाय अपने द्वार पर बन सके लोग उसे ठाकुर कह सके इस लालसा को पूरा करने के लिए होरी जिस प्रकार प्रयत्न करता है ठीक उसी प्रकार शोषित वर्ग उसका शोषण करते हैं। उसका भाई गाय को जहर खिलाकर मार देता है इतने ही क्रम में प्रेमचंद ने महाजनी , पुलिस , न्यायालय , पंच सभी का यथार्थ उजागर कर दिया है।

 

महाजनी का जाल केवल गांव ही नहीं नगर में फैला हुआ है , अमीर लोग भी उस में फंसकर कष्ट सहते हैं। इस सभ्यता के कारण ऋण लेना पड़ता है और महाजन बेईमानी करके निरंतर शोषण करता है।

गांव में पंचायत होना , गौ हत्या , गोबर का झुनिया से विवाह , मातादीन सिलिया चमारी से अवैध संबंध यह सभी घटनाएं यह सभी प्रसंग लेखक ने एक सामाजिक विकृति और यथार्थ चित्रण के लिए किया है।

गोदान में अनैतिक यौन संबंध गोबर – झुनिया , मातादीन सिलिया , नौखरी – खन्ना – मालती , मीनाक्षी तथा उसका वेश्यागामी  पति इन सब के द्वारा लेखक बताता है कि समाज में यह प्रवृत्ति किस प्रकार बढ़ रही है। यहां  प्रेमचंद की दृष्टि पूर्णता यथार्थवादी है।

 

प्रेमचंद ने गोदान में संयुक्त परिवारों के विघटन का भी दृश्य उकेरा है।होरी का परिवार उसके भाइयों से अलग हो जाने के कारण ही घटित होता दिखाया है। इतना ही नहीं गोबर झुनिया से विवाह करके शहर की ओर पलायन कर जाता है। यहां भी होरी के परिवार का विघटन होता है। गोदान के पात्र यथार्थ जीवन से लिए गए हैं उनके नाम , उनकी वेशभूषा , उनके कार्य , उनके हावभाव , उनका रहन-सहन सभी यथार्थ है।

मालती का तितली से मधुमक्खी बनना , युवती से समाजसेविका बनकर गांव में स्त्रियों तथा बच्चों की रात दिन भर जागकर सेवा – सुश्रुषा करना प्रेमचंद के आदर्शवादी मनोवृति का ही परिणाम है। मेहता के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा कर मालती का उनकी जीवनसंगिनी बनकर शेष जीवन बिताने का संकल्प उतना ही आदर्शवादी है जितना प्रसाद जी के नाटक स्कंदगुप्त में देवसेना का।  स्कंदगुप्त के प्रस्ताव को अस्वीकार करना उसका यह उदास प्रेम लेखक की आदर्शवादी दृष्टि का ही परिचायक है।

समग्रतः –  कह सकते हैं कि प्रेमचंद का संपूर्ण साहित्य यात्रा यथार्थवादी और आदर्शवाद पर आधारित था। प्रेमचंद मध्यमवर्गीय समाज से थे अतः उन्हें मध्यमवर्ग अथवा उसे नीचे के जात अथवा समाज से उन्हें जुड़ाव था। प्रेमचंद का सभी साहित्य स्वाधीनता संग्राम के उद्देश्यों की पूर्ति करता था। गांधी जी के आह्वान पर उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर गांधी जी का साथ दिया।  अंततोगत्वा उन्होंने महसूस किया कि यह समाज में पूंजीवादी का प्रभाव है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति में अंतर केवल और केवल पूंजी के आधार पर करता है उनका मोह भंग हुआ। प्रेमचंद ने अपने साहित्य यात्रा में अग्रणी की भूमिका निभाई 1936 के अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने साहित्य की रूपरेखा बताई थी उन्होंने साहित्य को केवल मनोरंजन के लिए नहीं अपितु समाज के लिए होने की बात कही थी।

 

नाटक
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