ध्रुवस्वामिनी राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक चेतना। jayshankr prsad ke natak

jayshankr prsad ke natak dhruvswamini

 

राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक चेतना

ध्रुवस्वामिनी नाटक में प्रसाद जी ने राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक चेतना का उत्कृष्ट रूप प्रस्तुत किया है। इतिहास से कथावस्तु का आधार ग्रहण करते हुए अतीत पर वर्तमान का चित्र प्रस्तुत करने मे सिद्धस्त  नाटक शिल्पी माने जाते हैं। प्रसाद जी भारत के अतीत के गौरव एवं महत्ता को प्रस्तुत करने के साथ-साथ भारतीय सांस्कृतिक मूल तत्वों का समावेश भी पात्रों एवं घटनाओं के माध्यम से अपने नाटकों में करते रहे हैं। भारतीय मनीषियों ने संस्कृति के जो मूल तत्व – आध्यात्मिकता , शरणागत वत्सला  ,  नारी के प्रति सम्मान ,  उदात्त मानव मूल्य , शौर्य एवं पराक्रम आदि निर्धारित किए हैं। वह प्रसाद जी के नाटकों में सर्वत्र दृष्टिगत होते हैं।

प्रसाद जी ने ध्रुवस्वामिनी के भीतर विवाह की समस्या पर गंभीर विचार किया है। यदि किसी नारी का विवाह उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी क्रूर , मद्यपी , क्लीव , कायर व्यक्ति से हो जाए और वह अपनी पत्नी को क्लीव दासी की भांति किसी अन्य पुरुष को उपहार में दे दे तो भी क्या ऐसी नारी और पुरुष को अपना देवता मानती रहे ?  इस प्रश्न को प्रसाद जी ने ध्रुवस्वामिनी के चरित्र के माध्यम से नाटक में रूपाकार किया है। रामगुप्त ने बलपूर्वक ध्रुवस्वामिनी से विवाह किया है परंतु वैवाहिक उत्तरदायित्व को एक पति के कर्तव्य को वह भली भांति नहीं निभाता और शकराज के मांगने पर ध्रुवस्वामिनी को उपहार में देने के लिए तत्पर हो जाता है। जब ध्रुवस्वामिनी उससे अपनी रक्षा करने एवं कुल मर्यादा को बचाने के लिए करुण प्रार्थना करती है तो वह ऐसा करने से साफ इंकार कर जाता है। इसी कारण ऐसे व्यक्ति को ध्रुवस्वामिनी अपना पति मानने से इंकार कर देती है। और पुरोहित भी धर्म शास्त्र में यह व्यवस्था देते हैं कि –

” ऐसे व्यक्ति (रामगुप्त) का ध्रुवस्वामिनी पर कोई अधिकार नहीं जो नारी के सम्मान एवं उसके गौरव की रक्षा नहीं कर सकता। ”

 

चंद्रगुप्त नारी की मर्यादा का रक्षक है , जब ध्रुवस्वामिनी अपने सतीत्व को खतरे में देखती है तो आत्महत्या करने और अपने मर्यादा का बचाव करना चाहती है। इस अवसर पर चंद्रगुप्त उसका सहायक बनकर उपस्थित होता है और शक दुर्ग में ध्रुवस्वामिनी के साथ मिलकर शकराज की हत्या कर देता है। कोमा भले ही एक काल्पनिक पात्र हो किंतु वह एक आदर्श प्रेमिका के रूप में दर्शकों पर अपनी एक अमिट छाप छोड़ दी है। वह शकर आज की इस मांग से सहमत नहीं है जिसमें राजनीतिक प्रतिशोध के लिए ध्रुवस्वामिनी को उपहार की वस्तु के रूप में मांगा गया था वह कहती है-

” किंतु राजनीति का प्रतिशोध क्या एक नारी को कुचले बिना नहीं हो सकता। ”

 

कोमा के पिता मिहिरदेव भी शकराज को समझाते हुए कहते हैं कि राजनीति में नीति से हाथ नहीं धो बैठना चाहिए।

” राजनीति ही मनुष्यों के लिए सब कुछ नहीं है राजनीति के पीछे नीति से भी हाथ ना धो बैठे जिसका विश्व मानव के साथ व्यापक संबंध है।”

 

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि प्रसाद जी के नाटक में अतीत का समिश्रण वर्तमान को अपनी संस्कृति और गौरव गाथा का बखान कर रहे थे। ध्रुवस्वामिनी में मूल समस्या स्त्री के शोषण की थी जिसे प्रसाद जी ने बड़े ही खूबी से पुरोहितों के माध्यम से न्याय दिलाया और ध्रुवस्वामिनी को चन्द्रगुप्त के साथ विवाह करवाया।

 

 

भारत दुर्दशा का रचना शिल्प
यह भी पढ़ें – ध्रुवस्वामिनी नाटक का रचना शिल्प 
देवसेना का गीत जयशंकर प्रसाद।आह वेदना मिली विदाई।
ध्रुवस्वामिनी की पात्र योजना
आलोचना की संपूर्ण जानकारी | आलोचना का अर्थ , परिभाषा व उसका खतरा

नीचे कमेंट करके जरूर बताएं की आपको और कौन कौन से नोट्स चाहिए | और आपको यहाँ पर क्या समझ नहीं आया |

दोस्तों हमने यह प्लेटफार्म उन् हिंदी विद्यार्थियों के लिए बनाया है जो स्कूल और कॉलेज में नोट्स के लिए जूझते हैं | यहाँ पर आपको सभी प्रकार के नोट्स मिलेंगे |

facebook page जरूर like करें |

Leave a Comment