त्रासदी नाटक रंगमंच की पूरी जानकारी नोट्स के रूप में आपको नीचे दी जा रही है |
त्रासदी नाटक रंगमंच
त्रासदी नाटक क्या है उसके कितने तत्व हैं ?
त्रासदी नाटक के तत्व
- यूनानी रंगमंच की एक महत्वपूर्ण नाट्य अभिव्यक्ति का रूप त्रासदी नाटक है।
- इस नाटक में किसी एक श्रेष्ठ व्यक्ति के जीवन को संपन्नता से विपन्नता की ओर जाता दिखया जाता है।
- श्रेष्ठ व्यक्ति जाने – अनजाने कोई ऐसी चारित्रिक या नैतिक त्रुटि – विच्युति से ग्रस्त हो जाता है , जिसके कारण माननीय , सामाजिक जीवन की स्वीकृत नैतिकता का हनन परिलक्षित होता है।
- एक देवी शक्ति जो इस नैतिकता को सतत बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील रहती है। वह देवी शक्ति नायक के जीवन में हस्तक्षेप करती है और उसे दंडित करती है।
- अपने त्रुटि – विच्युति का जब नायक को अवबोध होता है तो वह नायक पश्चाताप स्वरूप या तो अपने जीवन का अंत कर लेता है या उसकी आत्मा बुझ जाती है , अथवा मर जाता है।
- उसके जीवन की विपन्नता को दिखला कर सामाजिको का विरेचन करने प्रयत्न किया जाता है। अर्थात नैतिक आचरण के सामंजस्य को बनाए रखने की भावना जगाई जाती है।
- इस प्रकार त्रासदी का मूल उद्देश्य विरेचन करना होता है। विरेचन एक प्रकार का नैतिक संशोधन है , त्रासदी की यही आत्मा है।
- त्रासदी की आत्मा को सिद्धांत रूप में मान्यता है कि संसार में एक नैतिकता है , मनुष्य नैतिक आचरण वाला प्राणी है। इसलिए त्रासदी रचना का उद्देश्य यह होता है कि और अनैतिकता से बचकर जीवन यापन करने की सीख दी जा सके।
- जब समाज के श्रेष्ठ प्राणी के आचरण में किसी भूल के कारण जाने अनजाने में हो जाने वाली त्रुटि – विच्युति के कारण चरित्र और व्यवहार में नैतिक दोष आ जाता है तो , त्रासदी इस दोष के कारण नाटक में जो क्रियाएं – प्रतिक्रियाएं उद्भवित होती है। उसका लक्ष्य उस दोष का दमन करना होता है।
- इस प्रकार मृत्यु त्रासदी का मूल आधार है। यह मृत्यु शारीरिक भी हो सकती है अथवा मानसिक या आध्यात्मिक भी हो सकती है।
- त्रासदी के संबंध में अरस्तु की परिभाषा इस प्रकार है ” त्रासदी मानव जीवन के गंभीर पूर्ण और विस्तृत कार्य व्यापार का अनुकरण है , इसकी भाषा और संगीत के मिश्रण से पूर्ण एवं उदात होती है। इसमें नाटककार ऐसी घटनाओं का संयोजन करता है जो करुणा और भय के भावावेगों को उद्दीप्त करने उनका प्रशमन अथवा परिष्कृत करने में समर्थ हो।
- प्रस्तुत परिभाषा में त्रासदी को गंभीर और विस्तृत कार्य व्यापार का अनुकरण माना गया है।
=> प्रथम तो अरस्तु के मंतव्य के अनुसार अनुकरण क्या है ? इसका स्पष्टीकरण अपेक्षित है।
- अनुकरण सामान्य जीवन में घटित होने वाले व्यक्तियों के आचरण और व्यवहारों , क्रियाओं और नैतिक मूल्यों का वह सृजन है जिसे एक श्रेष्ठ व्यक्ति के चरित्र के माध्यम से (दुखांतकी) कृति में प्रस्तुत किया जाता है।
- अतः नाटक की कथावस्तु में जीवन का जैसा रूप यथार्थ के समाज में दिखाई पड़ता है , उसकी अपेक्षा उस जीवन के स्वरूप को अधिक कलात्मक रूप में समंजस्यपूर्ण विकास के रूप में प्रस्तुत करने की सृजनात्मक प्रवृत्ति ही अनुकरण है।
- पोएटिक्स में अरस्तु ने यह स्पष्ट किया है कि , सृजनात्मक रचनाकार अपनी कृति में अनुकरण जीवन का जो उबड़ – खाबड़ रूप यथार्थ व्यवहार में देखा जाता है। सामग्री तो वही लेता है , किंतु उसे सामंजस्य पूर्ण ढंग से कलात्मक रूप से कथावस्तु का समुचित विभाजन करते हुए उसे एक पूर्ण इकाई के रूप में प्रस्तुत करता है।
- त्रासदी में बात को सुलझाने का अंतिम फल मृत्यु है , क्योंकि कथा का आरंभिक भाग नायक के किसी त्रुटि – विच्युति के कारण उलझता है और मध्य भाग तक आते-आते उसे अपनी गलती का एहसास होता है। जिसे अरस्तू ने गलती की पहचान कहा है।
- दुखांत के भाग में नायक के चित्कार , पश्चाताप , अंतर्दाह के भयावह चित्र उभरते हैं , और वह अपने किए पर प्रतिक्रिया स्वरूप या तो अपने जीवन का अंत कर लेता है , अथवा उसका आध्यात्मिक जीवन बुझ जाता है।
- त्रासदी नाटक के कथानक के इस विधान में करुणा और भय का संवेग उभरता है , दर्शक देखता है कि एक ऐसा महापुरुष जिसको समाज के लोग अपने नैतिक जीवन और आचरण की दृष्टि से प्रकाश स्तंभ समझते थे। वह अनजाने में की गई भूल के कारण एक नैतिक त्रुटि के कारण इतना विपन जीवन जीने के लिए अभिशप्त होता है।
- अरस्तु कहते हैं कि – ‘ त्रासदी में करुणा और भय के भावेगों को उद्दीप्त करके त्रासदी नाटककार दर्शक की भावना और नैतिक विचार में सामंजस्य लाता है। ‘
त्रासदी नाटक के तत्व
अरस्तु ने त्रासदी नाटक रचना के 6 तत्वों का उल्लेख किया है जो इस प्रकार है
१ कथावस्तु
२ पात्र का चरित्र – चित्रण
३ भाषा शैली
४ विचार तत्व
५ दृश्य योजना और
६ संगीत
कथावस्तु –
- कथावस्तु के दो रूप होते हैं सरल और जटिल। त्रासदी में जटिल कथावस्तु व्यापार स्थितियां , घटनाएं प्रकट होती है। त्रासदी की कथावस्तु जटिल होती है। श्रेष्ठ नायक के महान कार्य व्यापार को प्रस्तुत करने के लिए नाटककार उपयुक्त कथानक की परिकल्पना करता है।
- नायक को अपनी भूल का जहां परिज्ञान होता है , वह कथानक का मध्य भाग है। कथानक का आरंभिक उलझने वाला रूप एक दुखांतक दिशा में परिवर्तित होने लगता है। नायक के जीवन में परिलक्षित आरंभ की सारी संपदाय विपन्नता में बदल जाती है।
- त्रुटि – विच्युति का उसमें घुन लग जाता है। उसके दोष में स्थित होकर जीवन का सारा उल्लास , सारा वैभव बिखरने लगता है।
- कथानक में एक नायक के जीवन की घटनाओं का ही अनुकरण किया जाना चाहिए। तभी उसमें तारतम्यता बनी रहती है। उसके एक कार्य को ही नायक का विषय बनाना चाहिए और उस एक कार्य के आरंभ , मध्य , अंत का सुंदर ढंग से संयोजन किया जाना चाहिए। तभी नायक की कथावस्तु में एकता का सौंदर्य आता है।
- नाटक का कथानक योजना में एक और बात की और अरस्तू ने बहुत जोर दिया है। वह है संभाव्यता का सिद्धांत त्रासदी के नाटककार को ऐसी घटनाओं की उद्भावना करनी चाहिए जो संभावित हो।
- अरस्तु के अनुसार किसी राजकुमार या राजा को अथवा समाज के श्रेष्ठ पुरुष को उस पुरुष को जो समाज के नैतिक मानदंडों की दृष्टि से श्रेष्ठ समझा जाता है उसे ही त्रासदी का नायक बनाना चाहिए।
- अरस्तु के अनुसार त्रासदी के पात्र में 4 गुण होने चाहिए – श्रेष्ठता , भाषा प्रयोग की स्वभाविकता , साधारण , मानवता , समरूपता।
पात्र का चरित्र चित्रण
- अरस्तु यह मानते हैं कि त्रासदी का नायक श्रेष्ठ , चरित्रवान , नैतिक , निष्कपट और विचारशील होना चाहिए।परंतु इन गुणों के साथ ही केवल एक ऐसा दोष अनायास ही प्रविष्ट हुआ साथ दिखाना चाहिए जिसके कारण वह कुछ अवगुण कर बैठता है और यह एक दोष उसके विनाश का कारण बन जाता है। यह एक दोष त्रुटि – विच्युति कहते हैं।
- इस दोष के कारण वह केवल अपने ही जीवन का अंत नहीं करता वरन् अपने प्रिय मित्रों संबंधियों और जिन – जिनसे उसका लगाओ रहता है उन सबको दुख पहुंचाता है। और कभी-कभी उनकी भी हत्या कर बैठता है , और अपनी भी हत्या कर बैठता है।
भाषा
- भाषा के संबंध में अरस्तु का सिद्धांत है कि श्रेष्ठ और अभिजात वर्ग का पात्र अपने इस सामाजिक अभिजातीयता के अनुरूप भाषा का सुमधुर और स्वाभाविक भाषा का प्रयोग करता हुआ दिख लाया जाना चाहिए। उनका मानना है कि त्रासदी का माध्यम अलंकृत भाषा होना चाहिए।
- उदात कथानक के अनुरूप अलंकृत भाषा के प्रयोग से त्रासदी में विशेष प्रभाव का सृजन होता है। पुनः त्रासदी की भाषा में सामंजस्य गति का पूरा निवेश होता है।
विचार तत्व
- त्रासदी का एक अन्य तत्व विचार तत्व है , विचार तत्व से अभिप्राय पात्र के मानसिक चिंतनों और व्यापारों का स्वरूप है।
- इन्हीं चिंताओं और मानसिक व्यापारों के माध्यम से व नैतिक आदर्शों के प्रभाव की सृष्टि करता है। यह विचार तत्व नाटक के कथानक में आद्योपांत समझाया रहता है , और सामाजिक नैतिक प्रयोजनों का निर्देश करने वाला रूप लेता है।
- त्रासदी में समानता सामाजिक नैतिक विचारों और मानसिक संतुलन को ही महत्व प्रदान करने के लिए कथानक की वैचारिक पृष्ठभूमि का महत्व होता है।
दृश्य योजना
- दृश्य – योजना तत्व का संबंध रंगमंच के शिल्प विधान से है। रंगमंच के साधनों का ऐसा कुशल प्रयोग सुलभ होना चाहिए जिससे त्रासदी का अभिनय प्रभाव पूर्ण प्रतीत हो सके।
- उसमें दृश्यबंध , दृश्य – सज्जा , वाद्य , संगीत , अभिनय , सबका कलात्मक संयोजन निहित होता है। फिर भी अरस्तु के अनुसार अपने नाट्य सृजन में त्रासदी का नाटक का दृश्य योजना के जिन अंतरंग तत्वों को बनता है उसके माध्यम से वह दर्शकों तक अपनी छाप स्पष्ट रूप से छोड़ पाता है।
- अभिनय की आकर्षक योजना के लिए दृश्य योजना आवश्यक है।
संगीत
- संगीत तत्व से अभिप्राय दृश्य योजना की लयात्मकता से भी है और नाट्य के पाठ्यांश की सुंदर लयात्मक अभिव्यक्ति से भी।
- त्रासद परिस्थितियों के तनाव को कम करने के लिए प्रायः संगीत युक्त भाषा का प्रयोग किया जाता है।
- संगीत या गीत के कौशल से सम्माहित किया जाना त्रासदी के प्रभाव को बढ़ाता ही है , किंतु वह अलग-थलग पड़ा हुआ प्रतीत नहीं होना चाहिए।
निष्कर्ष –
निष्कर्षतः कह सकते हैं कि त्रासदी नाटक किसी महान व सभ्य पुरुष के जीवन से संदर्भित होता है। उसके व्यक्तिगत और चारित्रिक गुण का समाज में पालन किया जाता है , अथवा उदाहरण दिया जाता है। वह महान पुरुष अपने जीवन में किसी कारण , किसी क्षण ऐसी गलती कर जाता है , जिसके कारण उसे दयनीय और अभावग्रस्त जीवन जीने के लिए विवश होना पड़ता है। इस गलती का सुधार करने के लिए वह जीवन भर प्रयत्न करता है , किंतु अंतिम समय में वह अपने जीवन लीला को समाप्त कर लेता है, या फिर अपने हितेषी लोगों की हत्या कर बैठता है।
इस प्रकार के नाटक की कथावस्तु त्रासदी नाटक के अंतर्गत आता है। इस नाटक का सर्वप्रथम उद्देश्य सामाजिक जीवन में बनाए गए नीति के नियमों और पाप रहित जीवन जीने के लिए प्रेरित करना रहता है , अर्थात इसके प्रस्तुति में किसी प्रकार की भी कमी समाज पर वह प्रभाव नहीं डाल पाएगी जो इस नाटक का उद्देश्य होना चाहिए। अतः त्रासदी नाटक प्रस्तुत करने में सभी तत्वों का समावेश और योगदान परिलक्षित रहता है।
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