गीत फरोश भवानी प्रसाद मिश्र।geet farosh bhwani prsad mishr | जी हाँ हुज़ूर में गीत बेचता हूँ

गीत फरोश भवानी प्रसाद मिश्र।geet farosh bhwani prsad mishr

गीत फरोश (geet farosh)
(भवानीप्रसाद मिश्र)

 

 

जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !

 

जी, माल देखिए, दाम बताऊँगा,
बेकाम नहीं है, काम बताऊँगा,
कुछ गीत लिखे हैं मस्ती में मैंने,
कुछ गीत लिखे हैं पस्ती में मैंने,
यह गीत, सख्त सरदर्द भुलाएगा,
यह गीत पिया को पास बुलाएगा !

 

जी, पहले कुछ दिन शर्म लगी मुझको;
पर बाद-बाद में अक्ल जगी मुझको,
जी, लोगों ने तो बेच दिये ईमान,
जी, आप न हों सुन कर ज्यादा हैरान –
मैं सोच-समझकर आखिर
अपने गीत बेचता हूँ,
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !

 

यह गीत सुबह का है, गाकर देखें,
यह गीत गजब का है, ढाकर देखे,
यह गीत जरा सूने में लिक्खा था,
यह गीत वहाँ पूने में लिक्खा था,
यह गीत पहाड़ी पर चढ़ जाता है,
यह गीत बढ़ाए से बढ़ जाता है !

 

यह गीत भूख और प्यास भगाता है,
जी, यह मसान में भूख जगाता है,
यह गीत भुवाली की है हवा हुजूर,
यह गीत तपेदिक की है दवा हुजूर,
जी, और गीत भी हैं, दिखलाता हूँ,
जी, सुनना चाहें आप तो गाता हूँ !

 

जी, छंद और बे-छंद पसंद करें,
जी, अमर गीत और ये जो तुरत मरें !
ना, बुरा मानने की इसमें क्या बात,
मैं पास रखे हूँ कलम और दावात
इनमें से भाएँ नहीं, नए लिख दूँ,
मैं नए पुराने सभी तरह के
गीत बेचता हूँ,
जी हाँ, हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !

 

 

जी गीत जनम का लिखूँ, मरण का लिखूँ,
जी, गीत जीत का लिखूँ, शरण का लिखूँ,
यह गीत रेशमी है, यह खादी का,
यह गीत पित्त का है, यह बादी का !
कुछ और डिजायन भी हैं, यह इल्मी,
यह लीजे चलती चीज नई, फिल्मी,
यह सोच-सोच कर मर जाने का गीत !
यह दुकान से घर जाने का गीत !
जी नहीं दिल्लगी की इस में क्या बात,
मैं लिखता ही तो रहता हूँ दिन-रात,
तो तरह-तरह के बन जाते हैं गीत,
जी रूठ-रुठ कर मन जाते है गीत,
जी बहुत ढेर लग गया हटाता हूँ,
गाहक की मर्जी, अच्छा, जाता हूँ,
मैं बिलकुल अंतिम और दिखाता हूँ,
या भीतर जा कर पूछ आइए, आप,
है गीत बेचना वैसे बिलकुल पाप
क्या करूँ मगर लाचार हार कर
गीत बेचता हूँ।
जी हाँ हुजूर, मैं गीत बेचता हूँ,
मैं तरह-तरह के गीत बेचता हूँ,
मैं किसिम-किसिम के गीत बेचता हूँ !

  • यह कविता समाज की कला विमुखता पर पतनशील मानसिकता पर व्यंग है और देश को जगाए रखने में समर्थ है।
  • भवानी प्रसाद मिश्र में उद्वेग या उत्तेजना का स्वर जरा भी नहीं है।
  • भवानी प्रसाद मिश्र की कविताओं में लोकगीत जैसी मिठास है।
  • वस्तुतः पूरी तरह नैतिक कवि हैं।
  • वह गांधी और सर्वोदय के प्रति निष्ठावान रहे हैं और उन मूल्यों के विपरीत कोई समझौता नहीं करते।
  • पंडित भवानी प्रसाद मिश्र आधुनिक हिंदी कविता के मूर्धन्य कवि हैं।

geet farosh /गीत फरोश  व्याख्या सहित –

यह कविता सर्वप्रथम अज्ञेय जी द्वारा संपादित दूसरा तार सप्तक में 1951 में प्रकाशित हुई थी। बाद में मिश्र जी के विख्यात काव्य संग्रह गीत फरोश में शामिल की गई। कवि तंगहाली में व्यवस्था के कारण ग्राहकों के लिए गीत लिखना पड़ रहा है। इस स्थिति को यह कविता अभिव्यक्त करती है इसमें कवि सहज बोली की भाषा में बेहद सशक्त व्यंग करता है और पूंजीवादी संस्कृति पर तथा साहित्यकारों की तत्कालीन स्थिति पर चोट करते हैं।

 

मैं आज ऐसी विपिन स्थिति में पहुंच गया हूं कि , मुझे अपने करीने से सजाए शब्दों के उपवन के गीतों को बेचना पड़ रहा है।  मैं अपनी कलम बेचने में यकीन नहीं करता पर परिस्थितियां ही इतनी त्रासद है कि मुझे अपनी कलम बेचने पर मजबूर होना पड़ रहा है। कवि स्पष्ट कर रहा है कि उन्हें किन परिस्थितियों के कारण गीत बेचना पड़ रहा है , और उन लोगों को स्पष्ट कर देना चाहता है कि वह किसी शौक के लिए इस कार्य को नहीं कर रहे हैं बल्कि वह मजबूरी में इस कार्य को करना पड़ रहा है।

 

मेरे पास गीतों का अथाह भंडार है आप जरा गीत पसंद कीजिए , जो भी गीत उठाएंगे उसी गीत का कोई ना कोई अर्थ होगा। वह निरर्थक नहीं होगा यह मेरे गीत आपके किसी ना किसी काम आ जाएंगे आपके सुख और दुख हो किसी भी प्रकार का वातावरण हो उसके अनुकूल उसकी परिस्थितियों के अनुकूल यह गीत आपको मिल जाएगी यह गीत निरर्थक नहीं है। सभी का कोई न कोई अर्थ है कोई न कोई काम है। अगर आपको मेरे गीत नहीं पसंद आते विशेषता नहीं पता तो मैं बता दूंगा मेरा हर गीत काम का है। कवि  इनका पंक्तियों में स्पष्ट और सरल भाषा में यह कहना चाहते हैं कि यह मेरे गीत किसी न किसी कार्य के लिए हैं यह निरर्थक नहीं है।

 

मैं गीत को स्वानुभूति मानता था , और कोई भी व्यक्ति अपनी अनुभूति का सौदा नहीं करता। यदि कोई ऐसा करता है तो वह अत्यंत लज्जाजनक और हास्यास्पद है। इसलिए मुझे भी गीत बेचने  में शर्म आ रही थी किंतु अब मैं इसका महत्व समझ चुका हूं। गीत बेचकर ही मेरी विपन्नता दूर हो सकती है। यदि इस कारण मेरा भविष्य सुधर सकता है मेरी आजीविका चल सकती है तो फिर शर्म किस बात की। लोग तो अपने ईमान तक बेच देते हैं मैं तो यह गीत भेज रहा हूं यदि कलाकार गीत बेचकर धनार्जन करता है तो इसमें कोई बुराई नहीं मैं तो अपनी मेहनत से ही बेच रहा हूं वरना आज तो संसार के लोग स्वार्थ की पूर्ति के लिए सब कुछ बेच देते हैं और यही नहीं बेच भी रहे हैं अपना ईमान अपना रिश्ता अपना धर्म सब कुछ दांव पर लगाने को तैयार हैं

इस पंक्ति में कवि ग्राहक को अपने माल का बखान कर रहा है और ग्राहक को यह बताने का काम कर रहा है कि इस गीत को गाकर देखें यह आपके किस समय के लिए है यह आप इसको चेक कर सकते हैं सुबह का गीत है शाम का गीत है सुख का है दुख का है भूख बढ़ाने वाला है भूख जगाने वाला है यानी कि हर एक प्रकार का गीत है इस तरह श्रीमान मेरे पास अनेक गीत है जो गीत अभी तक दिखाएं हैं उनमें से पसंद नहीं आया है तो मेरे पास और भी गहरे उन्हें भी दिखाता हूं हो सकता है उन गीतों में से कुछ पसंद आ जाए और आपके मन की इच्छा के अनुसार गीत मिल जाए।

मैंने बहुत सोच समझकर अपने गीत बेचने का निर्णय लिया आज तो व्यक्ति अपने ईमान तक को बेच  देते हैं आदिकाल से लेकर छायावाद काव्य परंपरा तक जितने भी जैसे भी गीत लिखे गए हैं उन सभी गीतों के समान मैं भी लिख सकता हूं तो श्रीमान अब तो आपकी मर्जी पर निर्भर है। आप कैसा गीत पसंद करते हैं आप कैसा यह खरीदना चाहते हैं मेरे पास अक्षय गीत को सहने लिखे का हर तरह का आपके आदेश की दरकार है।  तत्काल आपके समक्ष गीत पेश कर सकता हूं , बल्कि आप को आपके सामने ही लिख कर दे सकता हूं। इस पंक्ति में कवि की व्यवस्था है और ग्राहकों को किस प्रकार अपना माल बेचना चाह रहा है इसकी पूरी मार्मिकता इस पंक्ति में अंकित है।

 

मेरे गीत यदि आपको पसंद नहीं आ रहा है तो कोई बात नहीं मैं नए गीत लिख देता हूं , मैं रात-दिन गीत ही लिखता रहता हूं जैसी आवश्यकता हो मैं वैसी गीत लिखने में सक्षम हूं। प्रिय वियोग में डूबी नायिका की भावनाएं भी कैद कर सकता हूं और प्रिय – वियोग से व्यतीत नायिका के मरण के भाव को भी अपनी कविता में रख सकता हूं बस आपको अपनी रुचि बतानी होगी मैं आपके रुचि का गीत लिख सकता हूं। यह गीत उनके लिए है जिनमें रुचि एकदम घटिया स्तर पर पहुंच चुकी है जो श्रोता एकदम बाजारू हो गए हैं उनके मनोरंजन के लिए आप इस गीत का इस्तेमाल कर सकते हैं।

आपको कोई गीत पसंद नहीं आया तो कोई बात नहीं आपकी मर्जी है। आप कैसा चीज पसंद करना चाहते हैं किंतु एक बात अवश्य बताना चाहता हूं कि मैं आपकी पसंद का गीत में लिख सकता हूं मैंने तो अपना माल दिखा दिया है। अब आपकी मर्जी ठहरिए उठकर मत जाइए मैं आपको अपना आखिरी गीत दिखाता हूं इसके बाद आपको कोई गीत नहीं दिखाऊंगा। जिस प्रकार एक साधारण फेरीवाला अपने सामान का सौदा करता है तरह तरह से उसके गुण बताता है और उसका व्यापार करता है। ठीक उसी प्रकार भवानी जी अपनी कविता का व्यापार कर रहे हैं। जब मैं अपनी विषम परिस्थितियों से लाचार हो जाता हूं तो मुझे गीत बेचना  पड़ते हैं। वस्तुतः देश की वर्तमान विषम अर्थव्यवस्था और कवि की अनुभूति के प्रति सामान्य सिस्टर रुचि की उदासीनता का चित्रण कवि ने इस कविता ने किया है।

 

 

डॉक्टर संतोष कुमार तिवारी ने लिखा कि-
” भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की हकीकत यह है कि वह वादों के संकीर्ण और सीमित गलियारों में नहीं सिमटते”

हरिशंकर परसाई –
“भवानी भैया का व्यक्तित्व तूफानी रहा है शब्द में चाहे मोहन है उनके व्यक्तित्व का यह तूफान दर्शाता है”

  • कवि ने बार-बार स्वीकार किया है कि उसकी प्रारंभिक कविताओं पर मैथिलीशरण गुप्त का प्रभाव था।
  • वाद  में माखनलाल चतुर्वेदी के संपर्क में आने के कारण उनका काव्य और निखरा।

भवानी प्रसाद मिश्र दूसरे तार सप्तक के महत्वपूर्ण कवि थे। उनका जन्म 23 मार्च 1913 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के टिगरिया गांव में हुआ था। उनके पिता पंडित सीताराम मिश्र एक मध्यमवर्गीय कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। जिसके कारण उनके साहित्य में ब्राह्मणवादी शैली की झलक देखने को मिलती है। वह हिंसा की जगह अहिंसा सत्य व परिश्रम का मार्ग अपनाते हैं।
शिक्षा भवानी प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा नरसिंहपुर और होशंगाबाद में हुई।
जबलपुर रॉबर्टसन कॉलेज से उन्होंने BA  किया यह दौर स्वाधीनता संग्राम का दौर था , वह भी राष्ट्र कार्य से जुड़े और आजादी के लिए 3 साल की जेल की सजा भी भुगति  थी। वह कैद का समय उन्होंने अपने साहित्य की धार को और पैना  करने के लिए अपनाया। बांग्ला भाषा का अध्ययन किया साथ ही रविंद्र नाथ टैगोर के महत्वपूर्ण सभी साहित्य का अध्ययन किया। अन्य महान विचारकों के साहित्य का अध्ययन भी किया जिससे उनके किशोर कभी मन में साहित्य-सृजन का विकास हुआ।

महत्वपूर्ण काव्य कृतियां गीत फरोश 1956  , चकित है दुख 1968 , अंधेरी कविताएं 1968  , गांधी पंचशती 1970  , बुनी हुई रस्सी 1971 , खुशबू के शिलालेख 1973 , व्यक्तिगत 1974   परिवर्तन जिए 1976  , त्रिकाल संध्या  , शरीर कविता फसलें और फूल मानसरोवर दिन कालजई नीली रेखा तक दूसरा सप्तक छह अन्य कवियों के साथ कविताएं संकलित

साहित्यिक जीवन –

भवानी प्रसाद मिश्र मुख्यता दूसरे तार सप्तक के कवि हैं। तार सप्तक की शुरुआत अज्ञेय से मानी जाती है। भवानी जी के काव्य रचना का समय वही था जो समय राजनीति में द्वितीय विश्वयुद्ध का था। भवानी प्रसाद मिश्र का काव्य युगचेतना का संवाहक है वह गांधीवादी विचारधारा के अनन्य उपासक थे। यह उनको उनके परिवार से संस्कार रूप में मिला था वह एक कान्कुब्ज ब्राह्मण थे। जिसके कारण उनके काव्य में ब्राह्मणवादी शैली दृष्टिगोचर होती है। उनके काव्य में कहीं व्यंग्य कहीं विद्रोह का स्वर देखने को मिलता है वह काव्य में सूक्ष्म से सूक्ष्म मनोभाव व जनमानस के विचारों को अथवा प्रकृति के सौंदर्य को प्रकट करते हैं राजनीति व सामाजिक में फैली और समानता का भी साहित्य में संकलन करते हैं। उनके काव्य यात्रा दूसरे तार सप्तक से आरंभ होकर आजादी के बाद सिनेमा संवाद लेखन और आकाशवाणी आदि विभिन्न जगहों पर कार्य करती हुई संपन्न होती है। इस काव्य यात्रा में उनको कितनी ही आलोचनाओं का सामना करना पड़ा गीत फरोश कविता उसी की टीस है कुछ कवियों ने अपने कविता को फिल्म जगत वह पूंजीवादी समाज को बेचा इस क्रम में इन कवियों की काफी तीखी आलोचना हुई थी।

भवानी प्रसाद मिश्र ने गीत फरोश कविता में यही बताया है कि हम तो गीत बेच रहे हैं लोगों ने तो अपने ईमान तक भेज दिए हैं। गीत फरोश काव्य संग्रह 1935 से 47 तक के समाज प्रकृति और सौंदर्यबोध की रचनाएं संग्रहित है जो स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े किशोर मन की राष्ट्रीय भावनाओं को अभिव्यक्त करती है। कवि जिससे समाज का मार्गदर्शक कहा जाता है उसे भी आर्थिक व्यवस्था में अपनी कलम की बोली लगानी पड़ती है। उसकी स्वतंत्र चेतना इन त्रासद परिस्थितियों के चंगुल में पढ़कर बंध जाती है और वह एक फेरीवाले की तरह गीतों को बेचता है। गीत फरोश कविता में जीवन की विसंगतियों और अभावों की मार्मिकता की अभिव्यक्ति मिलती है
भवानी प्रसाद जो कविता लिखते हैं उसमें शिल्प हीन मालूम पड़ता वह एक कविता में लिखते हैं –
” जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख और उसके बाद भी हमसे बड़ा तू दिख ”
– भवानी प्रसाद की मानसिकता पर गांधीवादी विचारधारा का प्रभाव स्पष्ट देखने को मिलता है
– शायद ही कोई कवि हो जिसमें गांधीवादी विचारधारा से इतना प्रभावित हो दृढ़ हो फिर एक निश्चित संबंध रखता हो
– भवानी प्रसाद मिश्र की कविता में संस्कृति की समृद्ध चेतना है
– विशिष्ट मानवीय संवेदना का संप्रेषण उन्होंने किया है।

 

 

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